जयशंकर ने तोड़ी चुप्पी: भारत-पाकिस्तान संघर्षविराम के पीछे की असली कहानी

 भारत-पाकिस्तान संघर्ष विराम पर एस. जयशंकर का बयान: भारत की कूटनीति की एक दृढ़ मिसाल

परिचय

भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा पर शांति बनाए रखना हमेशा से एक बड़ी चुनौती रही है। हाल के वर्षों में कई बार संघर्षविराम (Ceasefire) के उल्लंघन हुए हैं, जिससे दोनों देशों के संबंधों में तनाव बना रहा। लेकिन हाल ही में विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर का बयान इस दिशा में एक स्पष्ट और दृढ़ नीति की झलक देता है, जो भारत की संप्रभुता और सुरक्षा पर कोई समझौता नहीं करता।





घटना की पृष्ठभूमि: ऑपरेशन सिंदूर

अप्रैल 2025 में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए एक घातक आतंकी हमले में 26 निर्दोष नागरिकों की जान चली गई। भारत ने इस हमले को सीधे पाकिस्तान-समर्थित आतंकवाद से जोड़ते हुए 'ऑपरेशन सिंदूर' नामक सैन्य अभियान चलाया, जिसमें PoK (पाक अधिकृत कश्मीर) में मौजूद कई आतंकवादी ठिकानों को निशाना बनाया गया।

इस अभियान में भारत ने विशेष बलों और ड्रोन हमलों के जरिए जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा और हिज्बुल मुजाहिदीन जैसे संगठनों के कई शीर्ष आतंकियों को मार गिराया। यह कार्रवाई अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की एक निर्णायक और आत्मनिर्भर रणनीति के रूप में देखी गई।


संघर्ष विराम कैसे हुआ?

डॉ. जयशंकर ने डच समाचार चैनल NOS को दिए एक इंटरव्यू में बताया कि भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष विराम पूरी तरह सीधे सैन्य संवाद के जरिए हुआ। उन्होंने साफ कहा कि इसमें अमेरिका या किसी अन्य देश की कोई मध्यस्थता नहीं थी।

भारत ने अपनी नीति स्पष्ट करते हुए पहले ही अमेरिका को सूचित कर दिया था कि अगर पाकिस्तान को संघर्ष विराम चाहिए, तो उसे सीधे भारत से संपर्क करना होगा। इसके बाद पाकिस्तान की सेना ने भारतीय सेना से संपर्क किया और दोनों देशों के सैन्य प्रतिनिधियों के बीच सीमित बातचीत के बाद यह संघर्ष विराम लागू हुआ।


अमेरिकी बयान पर जयशंकर की प्रतिक्रिया

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दावा किया था कि अमेरिका की मध्यस्थता के कारण भारत-पाकिस्तान संघर्ष विराम हुआ। इस पर कटाक्ष करते हुए डॉ. जयशंकर ने कहा:

“America was in America.”

यानी अमेरिका अपनी जगह था, भारत और पाकिस्तान ने अपने दम पर यह निर्णय लिया।

जयशंकर ने आगे कहा कि अमेरिका और अन्य देशों ने शांति की अपील जरूर की थी, लेकिन जो असल निर्णय हुआ, वह भारत और पाकिस्तान के बीच प्रत्यक्ष संवाद का नतीजा था।


भारत की स्थायी नीति: आतंकवाद के प्रति ‘Zero Tolerance’

डॉ. जयशंकर ने अपने बयान में एक बार फिर दोहराया कि भारत आतंकवाद के प्रति ‘शून्य सहिष्णुता’ की नीति पर कायम है। उन्होंने कहा कि चाहे कितने भी संघर्ष विराम हों या शांति प्रयास हों, भारत अपनी सुरक्षा से कोई समझौता नहीं करेगा।

उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि भारत की ओर से कोई ढील नहीं दी गई है और यदि पाकिस्तान फिर से आतंकवाद को बढ़ावा देता है, तो भारत फिर से जवाब देने में देर नहीं करेगा।


राजनीतिक और रणनीतिक संदेश

जयशंकर का यह बयान केवल कूटनीतिक प्रतिक्रिया नहीं था, बल्कि एक रणनीतिक संदेश था—भारत अब अपने मुद्दों को हल करने के लिए बाहरी शक्तियों पर निर्भर नहीं है। यह बयान भारत की बढ़ती अंतरराष्ट्रीय स्थिति और आत्मनिर्भर विदेश नीति का प्रतीक है।


आर्थिक और कूटनीतिक प्रभाव

भारत ने इस पूरे घटनाक्रम में संतुलन बनाए रखा—एक तरफ पाकिस्तान के साथ सीधी बातचीत से संघर्ष विराम किया, तो दूसरी तरफ अंतरराष्ट्रीय समुदाय को यह स्पष्ट संदेश दिया कि भारत अपनी शर्तों पर ही किसी भी समझौते को स्वीकार करेगा।

इसका असर यह भी हुआ कि संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की छवि एक परिपक्व, शांतिप्रिय लेकिन सख्त देश के रूप में और मजबूत हुई।


पाकिस्तान की स्थिति

पाकिस्तान ने इस बार एक अपेक्षाकृत शांत प्रतिक्रिया दी। यह माना जा रहा है कि भारत द्वारा की गई सैन्य कार्रवाई और वैश्विक कूटनीतिक दबाव के कारण पाकिस्तान ने संघर्ष विराम में पहल की। पाकिस्तान के आर्थिक हालात भी इस समय बेहद कमजोर हैं, जिससे उसके लिए लंबे समय तक सैन्य तनाव बनाए रखना संभव नहीं था।


जनता और मीडिया की प्रतिक्रिया

भारत में जनता और मुख्यधारा मीडिया ने डॉ. जयशंकर के बयान को एक सशक्त और स्पष्ट नीति के रूप में सराहा। सोशल मीडिया पर #ThankYouJaishankar और #IndiaFirst जैसे हैशटैग ट्रेंड करते रहे।


निष्कर्ष: एक सशक्त और आत्मनिर्भर भारत

भारत-पाकिस्तान संघर्ष विराम पर डॉ. एस. जयशंकर का बयान कई मायनों में महत्वपूर्ण है:

  1. यह भारत की विदेश नीति में आत्मनिर्भरता की पुष्टि करता है।

  2. यह आतंकवाद के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति को दोहराता है।

  3. यह बाहरी मध्यस्थता के बिना क्षेत्रीय मुद्दों के समाधान की दिशा में एक मजबूत संकेत है।

डॉ. जयशंकर ने भारत की कूटनीति को जिस सधे हुए और व्यावहारिक ढंग से प्रस्तुत किया, वह आने वाले समय में भारत की वैश्विक स्थिति को और भी सुदृढ़ करेगा।


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